राष्ट्र निर्माण के लिए अलख जगाने वाले संत :-पूज्य अघोरेश्वर
निर्वाण दिवस पर विशेष..!!
रायगढ़ :-मनुष्य संसार मे आने के बाद स्वय की शक्ति से अनभिज्ञ रहता है l यह अज्ञानता उसे जीवन की आत्मशक्ति के परिचय में बाधक बनती है l पूज्य अघोरेश्वर भगवान राम ने समाज को अवगत कराया कि ज्ञान के बिना जीवन जन्म के उद्देश्य व मृत्यु के रहस्य को समझ पाना कठिन है l भगवान राम ऐसे संत थे जिन्होंने मानव के अंदर छिपी असीमित शक्तियों का परिचय कराया और बताया कि यह जीवन केवल अपने जीने के लिए नही मिला बल्कि स्वय को परमात्मा से जोड़ना भी जीवन का उद्देश्य है l यह प्रक्रिया आत्म उत्थान से सम्भव है l भगवान राम ने आत्मा पर पड़े अज्ञानता के अंधकार को जीवन की सबसे बड़ी बाधा निरुपित किया lअज्ञानता का यह अंधकार आध्यत्मिक मूल्यो के चिंतन मनन संगीत व सत्संग के जरिये आसानी से मिटाया जा सकता है l पूजा इसकी सरल विधि है लेकिन यह पूजन सामग्री पर आधारित नही होना चाहिए lआत्म विकाश की प्रक्रिया मनुष्यता को ईश्वरत्व की ओर ले जाती है l समाज के सामने अघोरेश्वर ने इस सच्चाई को लाया l मूर्ति पूजा व कर्म कांड के जरिये धर्म अर्थ काम व मोक्ष सम्भव नही है l अघोरेश्वर ने बताया कि भगवान मंदिरों में स्थापित मूर्ति में नही बल्कि हर मानव के अंदर परमात्मा का अंश आत्मा के रूप में मौजूद है l आत्मा के लिये शरीर एक मन्दिर की तरह है l जैसा कर्म वैसा फल का मूलभूत सिंद्धान्त राजा रंक महिला पुरुष सभी पर लागू है l कर्म मनुष्य के हाथों में निहित है लेकिन परिणाम उंसके हाथो में नही है l गीता सार कर्मण्येवाधिकारस्ते माफलेषु कदाचन को जीवन का मंत्र बनाने की सिख भी उंन्होने दी l कोई भी पूजा अर्चना मनुष्य को उंसके किये गए पाप कर्मो से मुक्त नही करा सकती l कर्मो के बंधन की वजह से व्यक्ति जन्म जन्मांतर की प्रक्रिया में उलझ कर रह जाता है l श्रद्धा व शक्ति के बिना समाज दिशाहीन हो सकता है l श्रद्धा व समर्पण के अभाव में पूजा की विधि आडम्बर बन कर रह जाती है l पूजा वो विधि है जिसके जरिये मनुष्य अपनी उर्जा को एकत्रित करके ब्रम्हांड की महाउर्जा से जोड़ सकता है l महाउर्जा से जुड़ाव के बाद ही एकाग्रता आती है l एकाग्रता मानव समाज के लिए ज्ञान के द्वार खोलती है l यही ज्ञान समाज को शरीर व भौतिक संसाधनों की निर्थकता को समझा कर व्यष्टि से समष्टि की ओर ले जाने का मार्ग प्रशस्त करता है l मनुष्य का मन काम क्रोध लोभ स्वार्थ व अन्य कामनाओं में उलझ कर जीवन के वास्तविकता से दूर करता है l अघोरेश्वर ने प्रतिपादित किया कि अंदर की बजाय बाहर देखने पर भटकाव की स्थिति उत्पन्न होगी l भटकते ही पाप कर्म की राह में चलने का विकल्प शेष रहता है l बाहर खड़ा भौतिक संसार सदा भटकाने की कोशिशों में लगा होता है l बाहर का सँसार मानव समाज के सामने नित नईं आवश्यकताये पैदा करता है l
इन्ही आवश्यकताओ की पूर्ति हेतु उचित अनुचित को भूलकर पाप कर्मों में कब लिप्त हो जाते है मनुष्य को पता ही नही चलता l सिर्फ ज्ञान ही व्यक्ति व समाज का हित कर सकता है यह तभी संभव है जब इसे निष्काम भाव से किया जाये l परिस्थिति चाहे जैसी भी हो परिश्रम कभी व्यर्थ नही जा सकता l पूजा के लिए भी मानसिक परिश्रम की आवश्यक्ता होती है l अघोरेश्वर ने समाज को यह बताया कि कोई भी पूजा मानव को क्रोध वैमनस्य लोभ अहंकार की छूट नही देती l पूजा के पश्चात लोग पाप कर्म में लग जाते है l ऐसी पूजा निर्रथक है lबल्कि पूजा की आड़ में किये गए पाप कर्मों का हिसाब बराबर करने के लिये ही आत्मा जन्म मरण के बंधन से बाहर नही आ पाती l समर्पण की प्रक्रिया सरल नही है जीवन के चार आधार स्तंभ धन अर्थ काम और मोक्ष.चारो की महत्ता को अघोरेश्वर ने समान बताया l केवल धर्म के लिए शेष तीनो से विमुख हो जाना कतई उचित नही माना जा सकता l किसी भी एक उद्देश्य को महत्व दिया जाए तो जीवन मे असन्तुलन उत्पन्न होता है परिणाम स्वरूप जब भी यह संकट पूर्ण स्थिति आती है तो मनुष्य स्वयं को ईश्वर पर आश्रित कर प्रयास से विमुख होने लगता है l मानव यह भ्रम पाल बैठता है कि ईश्वर आएंगे लेकिन ईश्वर भी उन्ही की सहायता करते है जो स्वयं के साहस पर विश्वास कर परिस्थिति को परिवर्तित करने का प्रयास करता है l पूज्य अघोरेश्वर का सम्पूर्ण जीवन मानव कल्याण हेतु समर्पित रहा l समाज में व्याप्त अन्याय, अत्याचार तथा अनैतिकता व भेदभाव से बढ़ती खाई को पाटने के लिये समानता का सूत्रपात किया l देश विदेश में व्यापक भ्रमण के जरिये अन्याय के निराकरण हेतु सतत प्रयत्नशील रहे l उनके शाश्वत प्रयासो से अघोर पंथ व समाज के मध्य एक सेतु का निर्माण हुआ l श्मशान से समाज की ओर अवधारणा से देश भर में बड़ी संख्या में स्त्री , पुरुष अघोरपथ पर चलना शुरु किये । मानव समाज ने इस पंथ को आदर सहित न केवल स्वीकार किया वरन् श्रद्धा की भभूत को ललाट पर लगाया l बहुत ऐतिहासिक घटनाओं के सूत्रधार परम पूज्य अघोरेश्वर भगवान राम जी ही रहे l पांडित्यपूर्ण प्रवचन से दूर रहने वाले अघोरेश्वर व्यावहारिक ज्ञान के पक्षधर रहे l अन्य महात्माओं और विद्वानों की तरह अघोरेश्वर ने अध्यात्म और दर्शन के गूढ़ तत्वों पर पांडित्यपूर्ण प्रवचन नहीं दिया l
उन्होंने व्यावहारिक रूप से किये जानेवाले कार्यों पर सरल और सामान्य ढंग से प्रकाश डाला है. अघोरेश्वर ही एकमात्र ऐसे संत रहे जो समारोहों में, विशेषकर महिलाओं के आयोजनों में यह चेतावनी बार-बार देते रहे कि बिना आवश्यकता के अथवा आवश्यकता से अधिक किसी वस्तुओ का संग्रह न करे l अघोरेश्वर में दहेज-प्रथा को आसुरी प्रथा निरूपित किया l अघोरेश्वर भगवान रामजी ने साधना की चरमस्थिति से अर्जित सर्वस्व समाज के दलित, पीड़ित और शोषित मानवता के उद्धार हेतु वितरित कर दिया l जनकल्याण हेतु बाबा भगवान राम ट्रस्ट व श्री सर्वेश्वरी समूह की स्थापना की गई , जिसकी 130 शाखाएं आज देश के कोने-कोने तथा विदेशों में सक्रिय हैं. समूह की ओर से वाराणसी में पड़ाव स्थित उसके प्रधान कार्यालय पर अवधूत भगवान राम कुष्ठ सेवा आश्रम की स्थापना सन् 1962 में की गयी, जो कुष्ठ रोगियों की सेवा में जी जान से जुटी हुई है l कुष्ठ सेवाश्रम की शाखाओं का भी विस्तार होता जा रहा है l अर्जन के वितरण का अनूठा आदर्श उन्होंने प्रस्तुत किया lअघोरेश्वर ने समूह को निरंतर सक्रिय रखने के लिए एक उन्नीस सूत्रीय कार्यक्रम दिया, जिनके अंतर्गत अब तक लाखों पीड़ितों की सहायता की जा चुकी है l जनहित के यह कार्य आज भी जारी है l