बाल विवाह….पर छलका दर्द….क्या लड़की होना वाकई गुनाह है…?
एक बाल वधू ने अपने हाथों लिखी दास्तां..!!



बाल विवाह
आखिर लड़की होने में क्या गुनाह है.?आप सब ही तो यही कहते है न कि बच्चे तो ईश्वर की अनुपम कृति हैं।और ईश्वर ने लड़के-लड़की को एक सा बचपन दिया है। फिर उम्र से पहले सिर्फ लड़कियों को ही एक ऐसे परिणय सूत्र में क्यों बांध दिया जाता है.? जिसकी समझ और जिम्मेदारी उठाने के लिए लड़कियां उस उम्र में मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार ही नही हो पाती हैं। सच कहूं तो ऐसे रिश्ते को निभाने की हममे शक्ति ही नहीं होती है। जब हमें आँख में काजल लगाने चाहिए तब हमको एक ऐसे बंधन से जोड़कर हमारी आंखों को आंसुओं से सजाया जाता है।उसके मांथे की बिंदी से पहले क्यों हमारे माथे में परिवार ,रिश्तेदार व समाज का प्रश्नचिन्ह लगा दिया जाता है? तब खेलने की उम्र में उसे उस खिलौने की तरह एक गुड़िया रानी से किसी के घर की बहुरानी बना दिया जाता है।जब लड़कियों को उनके पढाई और सपने पूरे करने चाहिए, तब मजबूरन एक अनजान लड़के से उसकी शादी कराई जाती है।ऐसी स्थिति में एक सवाल मन में हमेशा उठता था क्या बेटी होना वाकई गुनाह है.? जब हमको हमारे भविष्य को सुरक्षित रखने के लिहाज से कलम पकड़ाना चाहिए था तब क्यों हम लड़कियों को शादी की डोर में बांध दिया जाता है? जबकि इस उम्र में उन्हें उन्हें न तो रिश्तेदारों की समझ होती है,न ही रश्म-रिवाजों की, तो फिर क्यों उम्र से पहले लड़कियों को औरत बनने के लिए मजबूर कर दिया जाता है.? क्या हम लड़कियों की सपने नहीं होते,हम सिर्फ शादी करने के लिए ही बनी होती है.? क्या हमारे समाज और रिश्तेदारों को हमें लड़कों की तरह आगे बढ़ने और लिखने-पढ़ने का अवसर नही दिया जाना चाहिए? वह भी तब जब आज लड़कियां सफलता पूर्वक देश चला सकती है। तो क्या अपने माँ-बाप और परिवार की जिम्मेदारियां नही उठा सकती हैं? हमने कभी-कभार या गिने-चुने मौकों में अपनी योग्यता साबित कर घर-परिवार और समाज का नाम रौशन किया है। इसके बाद भी क्या यह हमारी गलती है कि हम लड़कियां हैं…।।





















