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भूमाफियाओं का तांडव:आदिवासी भूमि पर अवैध सौदों का खुलासा…पढ़िए अन्दर की खबर…

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लैलूंगा में आदिवासी भूमि पर भू–माफियाओं का बड़ा खेल

फर्जी नामांतरण, साजिशन रजिस्ट्री और तहसील स्तर पर गड़बड़ी

प्रशासन की जांच के घेरे में तहसीलदार

शिकायतकर्ताओं का आरोप: नियमों को ताक पर रखकर करोड़ों की जमीन महज ₹3.60 लाख में बेच दी गई

संयुक्त कलेक्टर से निष्पक्ष जांच की मांग, राजस्व विभाग में मचा हड़कंप

रायगढ़।ज़िले के लैलूंगा क्षेत्र में एक बार फिर आदिवासियों की ज़मीन हड़पने का संगठित खेल सामने आया है।नगर पंचायत क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली महत्वपूर्ण भूमि के फर्जी नामांतरण ने पूरे प्रशासनिक ढांचे को हिला दिया है, शिकायतकर्ताओं ने तहसीलदार लैलूंगा शिवम पांडे सहित कुछ राजस्व कर्मचारियों पर गंभीर अनियमितताओं, मिलीभगत और भ्रष्टाचार के आरोप लगाए हैं।मामले की शिकायत संयुक्त कलेक्टर रायगढ़, प्रियंका वर्मा के संज्ञान में लाई गई है, जिससे पूरे जिले में हलचल मच गई है।

फर्जी नामांतरण का पूरा खेल— तहसील स्तर पर की गई मनमानी
मामला नगर पंचायत लैलूंगा के खसरा नंबर 622/12 और 502/6 से जुड़ा है, कुल रकबा लगभग 1290 वर्गफुट।यह भूमि पूर्व में स्वर्गीय जहर साय आत्मज बैगा राम के नाम पर दर्ज थी। मृतक जहर साय नि:संतान थे, लेकिन उनके करीब 14 निकट संबंधी वारिस मौजूद हैं,यह तथ्य पटवारी रिपोर्ट में स्पष्ट दर्ज है। फिर भी, छत्तर साय आत्मज चन्दर साय, निवासी पाकरगांव ने चालाकी से तहसील न्यायालय में आवेदन लगाकर भूमि पर अपना नाम दर्ज करवा लिया।

आश्चर्यजनक रूप से तहसीलदार ने,उत्तराधिकार जांच किए बिना आदेश पारित कर दिया,किसी भी वारिस या ग्राम पंचायत से सत्यापन नहीं कराया,और 9 अप्रैल 2025 तथा 15 सितंबर 2025 को एक ही प्रकरण में दो-दो आदेश जारी किए।यह अपने आप में गंभीर प्रशासनिक अपराध और राजस्व नियमों का सीधा उल्लंघन है।

✍️भूकंप महंत….

भूमाफियाओं की साजिश या सरकारी मिलीभगत?
शिकायतकर्ताओं का कहना है कि नामांतरण होते ही उक्त बहुमूल्य भूमि को खरसिया निवासी सेठ वर्ग द्वारा अपने ही ड्राइवर गोविंद राम सिदार के नाम से ₹3.60 लाख में रजिस्ट्री करा लिया गया।भूमि की वास्तविक कीमत नगर निकाय गाइडलाइन के अनुसार ₹1.68 करोड़ से अधिक आंकी गई है।शिकायतकर्ताओं के अनुसार, इस पूरी प्रक्रिया में भूमाफिया, राजस्व अधिकारी और स्टांप विभाग के कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत से करोड़ों की जमीन को नाममात्र की राशि पर हड़प लिया गया।

यहां तक कि स्टांप ड्यूटी में भी भारी हेरफेर की गई केवल ₹24,000 का स्टांप शुल्क लगाया गया, जबकि वास्तविक दर लाखों में होनी चाहिए थी।भूमि को कृषि भूमि दिखाकर रजिस्ट्री दरें घटा दी गईं।
जांच प्रक्रिया में भारी अनियमितताएं
शिकायत पत्र के अनुसार, 09 अप्रैल से 15 अप्रैल 2025 के बीच हुई जांच महज़ “औपचारिकता” थी।
वारिसों को सूचना नहीं दी गई,
कोई सार्वजनिक इश्तहार जारी नहीं हुआ,ग्राम पंचायत की पुष्टि रिपोर्ट नहीं ली गई,दस्तावेज़ों का सत्यापन अधूरा रहा,और मौके की जांच के नाम पर सिर्फ कागजी कार्रवाई कर ली गई।ऐसा प्रतीत होता है कि पूरा मामला पहले से तय साजिश के तहत रचा गया था ताकि भूमि आसानी से एक विशेष समूह के पास चली जाए।
गोविंद राम सिदार — ड्राइवर या मोहरा?
शिकायत में सबसे बड़ा सवाल यह उठाया गया है कि जिस व्यक्ति गोविंद राम सिदार (आत्मज साहू सिंह सिदार, निवासी केनाभांठा, खरसिया) के नाम भूमि दर्ज की गई,वह व्यक्ति आर्थिक रूप से सक्षम नहीं है कि ₹1.68 करोड़ की भूमि खरीद सके। इससे यह शंका गहराई है कि वह केवल मोहरा बनाकर किसी बड़े भूमाफिया या व्यापारी के इशारे पर कार्य कर रहा है। शिकायतकर्ताओं ने प्रशासन से मांग की है कि गोविंद राम सिदार की आर्थिक स्थिति, आय स्रोत और संपत्ति का ब्यौरा जांचा जाए।
तहसीलदार ने नियमों को रौंद दिया”– शिकायतकर्ताओं का आरोप
शिकायतकर्ताओं का कहना है कि तहसीलदार लैलूंगा ने राजस्व संहिता की धारा 109 और उत्तराधिकार अधिनियम की स्पष्ट अवहेलना की है।
न केवल जांच अधूरी रखी गई बल्कि आदेश पक्षपातपूर्ण और व्यक्तिगत स्वार्थों से प्रेरित दिखाई देते हैं।
स्थानीय जनता में आक्रोश, पंचायत क्षेत्र में हलचल
मामले के सामने आते ही लैलूंगा नगर पंचायत सहित आसपास के गांवों में रोष और चिंता दोनों है।ग्रामीणों का कहना है कि अगर इस तरह की साजिशों पर अंकुश नहीं लगाया गया तो आने वाले वर्षों में आदिवासियों की पैतृक भूमि धीरे-धीरे पूरी तरह से समाप्त हो जाएगी।
जिला प्रशासन के लिए अग्निपरीक्षा
अब यह पूरा मामला संयुक्त कलेक्टर और कलेक्टर रायगढ़ के लिए एक कठिन परीक्षा बन गया है।जिला प्रशासन को यह तय करना होगा कि क्या वाकई तहसील स्तर पर भ्रष्टाचार और भूमाफियाओं की गठजोड़ को बर्दाश्त किया जाएगा, या फिर निष्पक्ष जांच से दोषियों पर कार्रवाई होगी।
शिकायतकर्ताओं की प्रमुख मांगें
संपूर्ण मामले की उच्च स्तरीय जांच गठित की जाए। फर्जी नामांतरण आदेशों को तत्काल निरस्त किया जाए। तहसीलदार व संबंधित पटवारी-कर्मचारियों पर निलंबन व विभागीय कार्रवाई हो।भूमाफिया व रजिस्ट्री कराने वाले गोविंद राम सिदार की आर्थिक जांच हो। स्टांप चोरी, गलत मूल्यांकन और राजस्व हानि की जांच अलग से की जाए।
अंदर की बात — “आदिवासी भूमि हड़पने का नेटवर्क
विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार,यह मामला अकेला नहीं है। लैलूंगा के आसपास मुख्य मार्ग पर स्थित कई आदिवासी भूमि खसरे पर इसी प्रकार फर्जी वसीयत, झूठे नामांतरण और फर्जी दस्तावेजों के जरिए कब्जे की प्रक्रिया चलाई जा रही है। कई मामलों में अधिकारी व भूमाफिया का गठजोड़ अब खुले तौर पर देखा जा रहा है। जानकारों का कहना है कि यदि इस मामले की ईमानदार जांच हुई तो पूरे तहसील तंत्र में बड़ा खुलासा हो सकता है। लैलूंगा में हुआ यह फर्जी नामांतरण सिर्फ एक जमीन का मामला नहीं,बल्कि यह प्रशासनिक ईमानदारी,आदिवासी अधिकारों की सुरक्षा और राजस्व तंत्र की साख की कसौटी है अब देखना यह होगा कि जिला प्रशासन “सच के पक्ष में खड़ा होता है या चुप्पी की दीवार के पीछे छिप जाता है आदिवासी समाज, स्थानीय जनता और सामाजिक संगठनों की निगाहें अब रायगढ़ प्रशासन पर टिकी हैं।
एसडीएम भरत कौशिक,लैलूंगा ने कहा
शिकायत प्राप्त हुई है।संपूर्ण दस्तावेज़ों की जांच कराई जा रही है। यदि आरोप सही पाए जाते हैं तो दोषियों पर कड़ी कार्रवाई से कोई परहेज़ नहीं किया जाएगा।
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यह सिर्फ एक केस नहीं,एक बड़ा रैकेट है जो प्रशासनिक स्तर पर फल-फूल रहा है मै जहर सायं का सगा भतीजा हु लेकिन मेरा नाम नहीं चढ़ाया गया है तहसीलदार शिवम पांडे ने मनमानी को है

रघुनाथ सिंह, शिकायतकर्ता
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हम कई बार आवेदन देकर आग्रह करते रहे कि भूमि मृतक जहर साय की है और उसके कई जीवित वारिस हैं।परंतु तहसीलदार ने किसी को बुलाया तक नहीं।सब कुछ पहले से तय स्क्रिप्ट की तरह हुआ,
सहदेव सिंह सिदार, शिकायतकर्ता

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