किसान विरोधी बिल मेरी नजर में
सरकार द्वारा बिल की वापसी की घोषणा सरकार की एक सामयिक मजबूरी है।इसके पीछे सरकार की नीयत किसानों को न्याय देना नहीं ,वरन आने वाले दिनों में कृषि प्रधान राज्यों के चुनाव हैं।यह कोई खेल नहीं था वरन किसानों के लिए जीवन मरण का सवाल था । इस फैसले को सरकार या किसानों के हार या जीत के रूप में नहीं लेना चाहिए ।हां यह सरकार के अहम अहंकार के लिए सबक जरूर है तथा यदि यह किसी की असफलता है तो वह cooperate sector की जिसकी मंशा कृषि क्षेत्र का निजीकरण कर शोषण करने की थी।साथ ही यह अंधभक्तो के लिए एक सबक भी है कि सरकार के किसी उल जलूल कदम का बिना सोचे समझे अंध समर्थन न करें जिससे सरकार में अहंकार आ जावे और देश के एक अच्छे नेतृत्व को इस तरह की शर्मिंदगी का सामना करना पड़े । यदि सरकार इस निर्णय का शुरू से ही हो रही आलोचनाओं की समीक्षा लोकतांत्रिक तरीके से करती तो बात यहां तक नहीं आती ।पर शायद अंध समर्थन ने सरकार की आंखों पर पट्टी बांध दी थी ।मेरा निवेदन है कि यह आने वाले दिनों अंध भक्त संयम रखें तथा सरकार का IT विभाग भी इस निर्णय को उल जलूल तर्क देकर नेतृत्व को महान बताने की कोशिश न करे अन्यथा सरकार की और किरकिरी होगी।वैसे भी बिल संसद में ही रद्द हो सकते है।इंतज़ार करना होगा ।
कई बार जाम होंठ तक आते आते भी गिर जाते हैं…✍️ डाक्टर राजू अग्रवाल




